सूर्य नमस्कार यानि भगवान सूर्य को अर्पण व नमस्कार करना। सूर्य नमस्कार कोई एक आसन नहीं है बल्कि कई आसनों का एक मेल है। सूर्य नमस्कार के जरिए हम अपने शरीर व मन को स्वस्थ रख सकते है। सूर्य नमस्कार को योग में सबसे सर्वश्रेष्ठ आसनों में से एक माना जाता है। सूर्य नमस्कार करने से हमें संपूर्ण व्यायाम का लाभ मिलता है। इसका नियमित अभ्यास करने से हमारा शरीर स्वस्थ और रोग मुक्त रहता है।
अगर आप सूर्य नमस्कार का अभ्यास नियमित रूप से करते है, तो आपको सूर्य नमस्कार के दौरान इस मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से आपको कई शारीरिक व मानसिक लाभ प्राप्त होंगे।
आदित्यस्य नमस्कारन् ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस्तेशाने च जायते।।
सूर्य नमस्कार के अभ्यास से पहले आपको कोई भी योग आसन करने की जरूरत नहीं है। आपके हर योग अभ्यास की शुरुआत सूर्य नमस्कार के साथ होनी चाहिए। आइए जानते हैं सूर्य नमस्कार कैसे करें-
सबसे पहले ताड़ासन में खड़े हो जाएँ। इसके बाद गहरी सांस लेते हुए ऊर्ध्व वृक्षासन में जाएँ। इस दौरान आपकी पीठ सीधी रहना चाहिए, आपके हाथ जुड़े हो और आपकी नजर अपने हाथों का उंगलियों पर होनी चाहिए। सांस छोड़ते हुए उत्तानासन में आएँ। हाँ इस दौरान आपको पीठ के जोड़ों से झुकना है और साथ ही अपने नजर अपनी नाक पर केंद्रित करनी है। इसके बाद सांस अंदर लेते हुए ऊर्ध्व उत्तानासन में आ जाएँ। हाँ इस दौरान अपने पीठ के जोड़ों से उठें और आपकी उंगलियों की टिप जमीन पर लगी होनी चाहिए। अपनी पीठ को सीधी करते हुए अपनी नजर नाक पर केंद्रित करें। सांस छोड़ते हुए पहले दायां पैर फिर बायां पैर पीछे ले जाते हुए चतुरंग दण्डासन में आ जाएँ। इस दौरान ध्यान रहें आपका शरीर सीधा होना चाहिए, आपकी हथेलियाँ छाती की सीध में होनी चाहिए, कोहनियाँ शरीर के करीब और नजर नाक पर होनी चाहिए। सांस अंदर लेते हुए ऊर्ध्वमुखश्वानासन में जाएँ। इस दौरान आपके हाथ सीधे होने चाहिए, अपनी गर्दन को लंबी कर लें, अपने पंजों को जमीन पर टीका कर रखें और अपनी नजर तीसरी आँख पर केंद्रित करें। साँस छोड़ते हुए अधोमुखश्वानासन में आ जाएँ। हाँ इस दौरान अपनी एड़ियों को जमीन पर टिकाएँ रखें, हाथों के बीच कम से कम कंधों की चौड़ाई के बराबर दूर होनी चाहिए और आपकी नजर अपने नाभि पर केंद्रित हो। इस मुद्रा में 5 बार सांस अंदर-बाहर करें। अब सांस अंदर लेते हुए पहले दाएं पैर फिर बायां पैर को आगे ले जाएँ और दोबारा ऊर्ध्व उत्तानासन में आ जाएँ। सांस छोड़ते हुए दोबारा उत्तानासन में आ जाएँ। सांस अंदर लेते हुए दोबारा ऊर्ध्व वृक्षासन में आ जाएँ। सांस छोड़ते हुए ताड़ासन की स्थिति में आ जाएँ। यहीं पर सूर्य नमस्कार पूरा होता है। जिस आसन से हम सूर्य नमस्कार शुरू करते है उसी आसन पर समाप्त भी करते है।
सूर्य नमस्कार के कई लाभ हैं। नियमित रूप से सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से हमारा मानसिक व शारीरिक संतुलन बना रहता है। आइए जानते है सूर्य नमस्कार के क्या लाभ हैं ?
सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास करने से हमारे शरीर के रक्त परिसंचरण में सुधार आता है। हमारा हृदय, पेट, आंत, गला भी स्वस्थ रहता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास हमें रोग-मुक्त बनाएं रखने में मदद करता है। अगर सीधे शब्दों में बोलो तो सूर्य नमस्कार का हमारे शरीर में सिर से लेकर पैर तक लाभ होता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास धीमी गति से करने पर हमारा शरीर लचीला, मध्यम गति से करने पर हमारी मांसपेशियाँ मजबूत और तेज गति से करने पर हमारी हृदय गति बढ़ती है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास नियमित रूप से करने पर हमारी पाचन, श्वसन, प्रजनन शक्ति संतुलित रहती है और साथ ही हमारी मानसिक स्थिति में सुधार होता है। हाँ ध्यान रहें सूर्य नमस्कार का अभ्यास बुखार, जोड़ों में सूजन, हाई बीपी, मासिक धर्म, गर्भावस्था, हृदय रोग इत्यादि के दौरान नहीं करना चाहिए।