नाड़ी शोधन प्राणायाम यानि सूक्ष्म ऊर्जा प्रणाली से शुद्ध साँस लेने की एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया है। हमारे शरीर की नाड़ियाँ हमारी सूक्ष्म ऊर्जा का केंद्र है, जो कई कारणों से बंद हो जाती है। नाड़ी शोधन प्राणायाम हमारी साँस लेने की एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमारी नाड़ियों की सूक्ष्म ऊर्जा प्रणाली को साफ कर सुचारु रूप से संचालित करने में मदद करती है।
इसका नियमित रूप से अभ्यास करने पर हमारा मन शांत होता है। नाड़ी शोधन को अनुलोम विलोम प्राणायाम भी कहते है। इस क्रिया का अभ्यास हम सभी लोग आसानी से अपने घर में कर सकते है।
हमारी जो नाड़ियाँ तनाव व शारीरिक-मानसिक आघात तथा अस्वस्थ्य जीवन शैली के कारण बंद हो जाती हैं, अपने उन नाड़ियों को हम नाड़ी शोधन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से खोल सकते है। आपको बता दें- इड़ा, सुषुम्रा व पिंगला हमारे शरीर की सबसे महत्वपूर्ण नाड़ियाँ हैं।
हमारी नाड़ियों के बंद होने के कई कारण हैं। जब हम जुकाम, मानसिक कमजोरी, उदासी, इत्यादि का अनुभव करते है, तो उस समय हमारी इड़ा नाड़ी सही से काम नहीं कर रही होती है। जब हमें गुस्सा, जलन व हमारे शरीर में खुजली, अधिक भूख लगना, हमारी नासिका बंद होने का अनुभव होता है, तो उस समय हमारी पिंगला नाड़ी सही रूप से काम नहीं कर रही होती है। इसलिए हमें अपने नाड़ियों को स्वस्थ रखने के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम की जरूरत है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से हमारा मन शांत-खुशी, हमारा तनाव-थकान दूर होता है और हम मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होने लगते है। नाड़ी शोधन या अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास करना बेहद ही आसान हैं। सबसे पहले आप अनुलोम विलोम प्राणायाम के अभ्यास के लिए सही समय का चुनाव करें।
विशेषज्ञों का मानना है- अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास सुबह या शाम के समय करना चाहिए, क्योंकि सुबह और शाम के समय हमारा वातावरण शांत और ताजा होता है। अपने घर के किसी साफ जगह पर योग मैट या दरी बिछाएँ और पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएँ। हाँ आप इस दौरान कुर्सी में भी बैठ सकते है। अनुलोम विलोम क्रिया के लिए दाएँ हाथ के अंगूठे और मध्यमा उंगली का इस्तेमाल किया जाता है।
इस दौरान अपनी आँखें बंद कर लें और गहरी साँस ले और धीरे-धीरे छोड़ें। अब धीरे-धीरे अपनी एकाग्रता बनाने की कोशिश करें। इस प्रक्रिया में आपको सबसे पहले अपने दाएं हाथ के अंगूठे से अपनी दाहिनी नासिका को बंद करना होता है और बाई नासिका से धीरे-धीरे गहरी साँस लेनी होती है।
इसके बाद दाएँ हाथ की मध्यमा व अनामिका से बाई नासिका को बंद करें और दाई नासिका से अपने अंगूठे को हटा लें और धीरे-धीरे सांस छोड़ें। इस क्रिया को कम से कम 5-10 मिनट तक दोहराते रहें। इस क्रिया के दौरान अपनी आंखें बंद और अपने रीढ़ को सीधा और कंधों को ढीला रखें। अपने चेहरे पर सकारात्मक भाव रखें।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम के दौरान अपनी सांसों पर बिल्कुल भी जोर ना दें। आपकी सांसों की गति सहज होना चाहिए। इस दौरान आपको अपने मुंह से सांस नहीं लेना है। अपने उंगलियों को अपने नाक व अपने माथे पर आराम से रखें। इस प्रक्रिया के दौरान अपने मन को अपनी सांसों की गति पर केंद्रित करने का प्रयास करें।
अनुलोम विलोम प्राणायाम के बाद ध्यान क्रिया करना बेहद लाभदायक होता है। अगर आप अपने मन को शांत व केंद्रित करना चाहते है, तो आप अनुलोम विलोम का अभ्यास कर सकते है। हमारा मन हमेशा भूतकाल के पछतावे और भविष्य के चिंता में डूबा रहता है। इसलिए हमें योग और ध्यान क्रिया को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।
अनुलोम विलोम प्राणायाम हमारी श्वसन प्रणाली व रक्त प्रवाह तंत्र को भी मजबूत बनाता है और साथ ही हमारे मस्तिष्क के बाएँ और दाएँ गोलार्द्ध को बराबर करने में हमारी मदद करता है। इस प्राणायाम का अभ्यास खाली पेट की करें। नाड़ी शोधन प्राणायाम से हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का प्रवाह होता है जिससे हमारे शरीर का तापमान सामान्य रहता है।