आप भी जानिए योग के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं?

योग एक प्रकार की आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिसके हमें मानसिक व शारीरिक रूप से लाभ होते है। योग के माध्यम से हम अपने शरीर, मन और आत्मा को एक साथ ला सकते है। योग शब्द से लगभग संपूर्ण संसार परिचित है। योग एकमात्र स्वस्थ रहने का सबसे आसान व सरल माध्यम है। योग के माध्यम से हम अपने मन को शांत कर अपने विचारों को दूर कर स्वयं पर केंद्रित कर सकते है। मगर इसके लिए हमें सबसे पहले योग के प्रकारों को सही से समझना होता है। आइए योग के प्रकारों  के बारे में जानते हैं।

योग के प्रमुख प्रकार

योग के 6 प्रमुख प्रकार होते हैं-

  1. हठ योग 
  2. राज योग
  3. कर्म योग
  4. भक्ति योग
  5. ज्ञान योग
  6. तंत्र योग

1- हठ योग यानि संस्कृत भाषा में ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ और ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्रमा’ होता है। हठ योग दो प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है। हठ योग का हठयोग प्रदीपिका प्रमुख ग्रंथ है। हठ योग साधना की मुख्या धारा शैव रही है। हठ योग का अभ्यास तीन भागों में पूरा किया जाता हैं- रेचक यानि श्वास को सप्रयास बाहर छोड़ना और पूरक यानि श्वास को सप्रयास अंगर खींचना व कुम्भक यानि श्वास को सप्रयास रोके रखना। कुंभक को बर्हिःकुंभक व अंतःकुंभक दो भागों में बांटा गया है। अपने प्राणों को अपने नियंत्रण से गति देना हठयोग है। बिना हठयोग की साधना के समाधि की प्राप्ति बहुत कठिन है। हठ योग यानि ध्यान के लिए आरामदायक आसन में बैठना और लंबे समय तक ध्यान क्रिया का अभ्यास करना। हठ योग के माध्यम से हमारे शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। जिससे हमें स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ते है।

2- राज योग सभी योगों का महाराज कहलाता है। राजयोग में ही अष्टांग योग का वर्णन आता है। राज योग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है। राज योग यानि एक यात्रा या स्वयं को पुनः जानने की यात्रा है। राज योग में हम अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी से अपने लिए समय निकालकर शांति वातावरण में बैठकर आत्म निरीक्षण करना है। जिससे हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौटते है। आज हम असली जिंदगी से बहुत ही दूर चले गए है। जिसके कारण हम सच्ची मन की शांति व शक्ति को भूल मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक रूप से अस्वस्थ जीवन जी रहे है। राज योग का अभ्यास आँखें खोलकर किया जाता है, इसलिए इस योग का अभ्यास करना बहुत की आसान है। योग के माध्यम से हमारे अंदर आध्यात्मिक व सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और हमारे अंदर की नकारात्मक भाव व शक्ति दूर होती है। राज योग हमारी एकाग्रता व अनुशासन पर केंद्रित होता है। राज योग के आठ अंग- नैतिक अनुशासन, आत्म संयम, एकाग्रता, ध्यान, सांसों का नियंत्रण, मुद्रा, संवेदी अवरोध, परमानंद है।

3- कर्म योग का अर्थ है- अपने कर्म में लीन होना या निस्वार्थ क्रिया। कर्म योग से हम मानवता, सेवा भाव और आत्मसमर्पण को जानते है। इस योग में हमें अपने मन व मस्तिष्क को नकारात्मक ऊर्जा से दूर करना व छुटकारा पाना सीखते है। यह योग शारीरिक से अधिक आध्यात्मिक है। कर्म योग में हम अपनी जीवात्मा से जुड़ते है। कर्म योग हमारी आत्मशक्ति को जागृत करती है। इस योग से हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते है। इतना ही नहीं हमारे शास्त्रों में भी कर्म योग को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जो लोग गृहस्थ जीवन जी रहे है, उनके लिए यह योग सबसे बेहतर है। आज हम सभी अपने-अपने कार्यों पर लगे रहते है, मगर हम अपनी अधिकांश शक्ति व्यर्थ कर देते है, इसलिए हमें कर्म योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। सही और स्वस्थ जीवन, देश व मानव समाज के लिए कर्म योग आवश्यक है।

4- भक्ति योग का अर्थ है- प्रेम और विश्वास है। भक्ति योग हमें दूसरों को क्षमा करना, प्रेम करना और सहिष्णुता सीखता है। प्रेम आधारभूत व सार्वभौम का संवेग है। प्रेम हर इंसान के अंदर होता है चाहे वह एक आंतकवादी हो या फिर एक सामान्य मजदूर ही क्यों ना हो। हर इंसान किसी ना किसी से प्रेम करता है। जैसे कोई अपने बच्चों से तो कोई पैसे से प्रेम करता है। प्रेम से ही भय, घृणा और शोक पैदा होता है। भक्ति योग के 9 सिद्धांत हैं- श्रवण, प्रशंसा, स्मरण, पडा-सेवा, पूजा, वंदना, दास्य, सखा, आत्म निवेदना। 

5- ज्ञान योग का अर्थ स्वयं के परिचय से है। ज्ञान योग हमारी व हमारे परिवेश को अनुभव करने का सबसे अच्छा माध्यम है। ज्ञान योग के माध्यम से हमें वास्तविक सत्य का ज्ञान प्राप्त कर सकते है। ज्ञान योग वह मार्ग है जहाँ अंतर्दृष्टि और अभ्यास से वास्तविकता की खोज की जा सकती है। ज्ञान योग हमारे मस्तिष्क से नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करता है। ज्ञान योग- आत्मबोध, अहंकार मिटाने, आत्मानुभूति के सिद्धांतों पर काम करता है। ज्ञान योग बुद्धि का योग है। 

6- तंत्र योग का अर्थ होता है- विस्तार। तंत्र योग के माध्यम से हम अपने मस्तिष्क का विकास व विस्तार कर सकते है। तंत्र योग हमें हमारी चेतना के सभी स्तरों तक पहुंचा सकता है। तंत्र योग हमारी वास्तविक आत्मा को जागृत करती है। तंत्र योग के माध्यम से हम अपनी कामुकता को बेहतर बनाकर अपने रिश्तों को मजबूत कर सकते है। इसे कुंडलिनी योग भी कहा जाता है। इस योग में सिर्फ कामवासना के बारे में ही नहीं है बल्कि यह इसका एक हिस्सा है।

योग का अभ्यास हमें धैर्य और दृढ़ता के साथ करना चाहिए। योग के शुरुआती दिनों में आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। पहले-पहले आप योगासन सही से नहीं कर पा रहे हैं, तो इस बात की चिंता ना करें। योग के अभ्यास के दौरान अपने मांसपेशियों और जोड़ों पर खिंचाव कम दें।

हाँ शरीर के साथ जल्दबाजी व ज़बरदस्ती ना करें। अगर आप योग व मेडिटेशन को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहते है, तो योग-मेडिटेशन का अभ्यास करें। हाँ योग का अभ्यास मासिक धर्म व गर्भावस्था के दौरान नहीं करना चाहिए। इस दौरान अपने खान-पान का भी विशेष ध्यान दें। पर्याप्त नींद लें। शरीर को पौष्टिक आहार दें। अगर आपको हमारा यह लेख ज्ञानवर्धक  लगा तो हमारे इस लेख को अधिक से अधिक शेयर कीजिएगा।

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